Meditation Tips: क्या है ध्यान? भगवद् गीता से जानें इसे करने का तरीका और लाभ
Meditation Tips: 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस मनाया जाता है। आइए जानते हैं कि भगवद् गीता ध्यान की प्रक्रिया और इसके लाभों के बारे में क्या कहती है।
Meditation Tips: विश्व ध्यान दिवस 21 दिसंबर को मनाया जाता है। साल 2024 में विश्व ध्यान दिवस की थीम ‘आंतरिक शांति, वैश्विक सद्भाव’ है। पतंजलि के योगसूत्र से लेकर गीता के उपदेश तक हर जगह ध्यान को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। कुछ लोग योग आसनों को ही ध्यान समझ लेते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। आसन के द्वारा हम अपने शरीर को मजबूत बनाते हैं, ताकि ध्यान लग सके। हमारा शरीर एक जगह पर स्थिर हो और ध्यान की प्रक्रिया आसानी से हो सके। श्रीमद् भगवद् गीता में ध्यान को लेकर महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं, और साथ ही इससे होने वाले लाभ का भी गीता में जिक्र है।
ध्यान क्या है?
भगवद् गीता ने ध्यान को एक योगक्रिया बताया है। जो आपको आत्मनिर्भर बनाता है। निरंतर अभ्यास करने से आप एकाग्रता प्राप्त करते हैं और तनाव से छुटकारा पाते हैं। ध्यान भी मानसिक स्थिरता और संतुलन देता है। यह भी मन की शुद्धता और विकार से मुक्ति का लक्ष्य है। ध्यान गहन होने पर व्यक्ति समाधि प्राप्त करता है। ध्यान करने से आत्मा परमात्मा से मिलती है। यानि ध्यान वह योग प्रक्रिया है जिसके जरिये हम स्वयं पर सिद्धि प्राप्त करते हैं। ध्यान करने वाले व्यक्ति का मन नियंत्रित रहता है और वो वर्तमान में जीता है। मानसिक और शारीरिक स्थिरता को ध्यान कहना गलत नहीं होगा।
गीता में बताई गई है ध्यान करने की विधि
गीता के पंचम और षष्ठम अध्याय में योग करने का सही तरीका बताया गया है। भगवान कृष्ण अर्जुन को ध्यान क्रिया के माध्यम से मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने के तरीके बताते हैं।
गीता में कहा गया है कि ध्यान करने से पहले किसी शुद्ध स्थान पर आसन बिछाकर बैठना चाहिए। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि स्थान न बहुत ऊंचा न बहुत नीचा हो। आसन पर बैठने के बाद अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करना चाहिए और अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए।
इसके बाद गीता में बताया गया है कि, ध्यान करने के लिए सिर व गले को समान और अचल रखते हुए सुखासन में योगी को बैठना चाहिए। बाहरी चीजों से ध्यान को हटाकर नासिका के अग्र भाग यानि दोनों भौहों के बीच में लगाना चाहिए।
तत्पश्चात सभी प्रकार के विषयों से मन को हटाकर नेत्रों को भृकुटी के मध्य में स्थिर करने का प्रयास करना चाहिए। इसके बाद प्राण और अपान वायु को सम करना चाहिए।
इसके बाद, मन के सभी विकारों से दूर होकर शांतिपूर्वक ध्यान में बैठे रहना चाहिए। इस तरह, निर्विकार और निर्मल व्यक्ति परमतत्व पर ध्यान देकर आनंद की अंतिम सीमा को प्राप्त करता है और शांति पाता है।
गीता में ध्यान से जुड़े नियम
गीता में ध्यान को सिद्ध करने के लिए कुछ नियमों का भी उल्लेख है। गीता कहती है कि ध्यान वह करता है जो अधिक खाता या भूखा नहीं रहता। ध्यान की सिद्धि भी अधिक जगाने या सोने से नहीं मिलती। सुख में अत्यधिक खुश और दुख में ज्यादा दुखी होने वाला व्यक्ति भी ध्यान को सिद्ध नहीं कर पाता। गीता में बताया गया है कि, जो व्यक्ति उचित आहार-विहार करता है, उसी को ध्यान-योग में सिद्धि प्राप्त होती है।
ध्यान करने के लाभ
गीता में बताई गई इन शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करके भी हम ध्यान और मानसिक शांति पा सकते हैं। ध्यान करने से हम मानसिक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों को पा सकते हैं। ध्यान हमारी एकाग्रता को बढ़ाता है और हम अपने लक्ष्य को पूरा कर सकते हैं। ध्यान से हम एक आदर्श और व्यवस्थित समाज भी बना सकते हैं। ध्यान मानसिक और शारीरिक विकारों को दूर करता है, यानि स्वस्थ जीवन जीने के लिए भी ध्यान करना अति आवश्यक है।