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Hindustan विशेष: यहां सरयू प्रभु राम के तीर से ऋषि के घर पहुंची, जानें पूरी कहानी

राजा जनक के गुरु अष्टावक्र का आश्रम उत्तर प्रदेश के गोंडा में तरबगंज में है। भगवान राम ने कभी बाण से सरयू नदी को आश्रम तक घुमाया था।

श्रीअष्टावक्र ऋषि आश्रम अमदही ग्राम पंचायत, तरबगंज तहसील क्षेत्र में गोण्डा जिले में स्थित है। त्रेता शताब्दी में, महर्षि उद्दालक के प्रिय शिष्य कहोड़ मुनि और उनकी सुपुत्री सुजाता के पुत्र अष्टावक्र ऋषि ने इस स्थान पर अपना आश्रम बनाकर साधना की। प्रभु श्रीराम ने स्वयं उन्हें अश्वमेध यज्ञ के लिए छह महीने का समय मांगा था। यहाँ बाण का संधान करने के लिए उन्हें दक्षिण दिशा में छोड़ा गया, जिससे सरयू नदी से एक धारा निकलकर यहां होते हुए वापस सरयू में मिल गई।

राजा जनक के गुरु थे, अष्टावक्र ऋषि आश्रम ट्रस्ट के अध्यक्ष अरुण कुमार सिंह ने बताया। राजा जनक को आत्मज्ञान तभी मिला जब अष्टावक्र बारह वर्ष का था। ऋषि अष्टावक्र का पहला उल्लेख वाल्मिकी रामायण के युद्धकांड में हुआ था। जब अष्टावक्र माता के गर्भ में थे, पिता ने उनके शरीर को आठ अंगों से विहीन कर दिया।

रामघाट पड़ा नाम

जनश्रुतियों के अनुसार श्रीरामचन्द्र जी ने वन से वापस आकर अश्वमेध यज्ञ किया। श्री अष्टावक्र ऋषि को भी प्रभु राम ने आमंत्रित किया था, जिससे संदेशवाहक भी आया था। श्रीअष्टावक्र ऋषि ने संदेश वाहक से कहा कि वे नहीं आ सकते जब तक यज्ञ अनुष्ठान पूरा नहीं हो जाता। क्रिया पूरी होने में छह महीने लगेंगे। संदेश वाहक ने वापस जाकर श्री रामचन्द्र जी को बताया। श्री रामचन्द्र जी इतने लंबे अनुष्ठान के बारे में अधिक जानना चाहते थे। इसलिए वह रामघाट अमदही में स्थित ऋषि आश्रम पहुँचा और उनसे अनुष्ठान के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।

इस पर ऋषि अष्टावक्र ने कहा कि अनुष्ठान करने के लिए सरयू से तीन कोस दूर जल लाकर अभिषेक करना होगा, इसलिए अनुष्ठान में देरी होगी। इसलिए अनुष्ठान में बहुत समय लगेगा। यह सुनकर श्री रामचंद्रजी ने अपने धनुष पर एक बाण रखकर दक्षिण की ओर चला गया। इससे सरयू नदी का जल निकलकर आश्रम के आसपास बहने वाली टेढ़ी नदी (कुटिला) से मिलकर फिर से सरयू नदी में मिल गया। इसे बणस्रोत कहा गया था। जो बदलकर बरसोत कहलाता है। यहीं पर भगवान श्री राम ने स्नान किया और ऋषि-मुनियों का यज्ञ कराकर उन्हें अयोध्या ले गए, इसलिए इस जगह का नाम रामघाट पड़ा।

यहां पर होने वाले आयोजन

यहां, अष्टावक्र ऋषि आश्रम ट्रस्ट के अध्यक्ष अरुण कुमार सिंह ने कहा कि 84 कोसी परिक्रमा का पड़ाव, श्रीराम नवमी, श्रीराम जन्मोत्सव, श्रीहनुमान जयन्ती, कृष्ण जन्माष्टमी, दीपोत्सव और छठ पूजा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

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