Sheetala Ashtami 2025: ये खास पाठ शीतला अष्टमी के दिन जरूर करें; सभी दुख-परेशानियों से छुटकारा मिलेगा

Sheetala Ashtami 2025: हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत-त्योहार का अपना अलग महत्व है।
Sheetala Ashtami 2025: इस तरह, चैत्र की शीतला अष्टमी, जिसे बसोड़ा या बसोड़ा कहा जाता है, बहुत खास मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन मां शीतला की विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा पाता है।
हिन्दू धर्म में 2025 में शीतला अष्टमी का एक विशिष्ट महत्व है। इस दिन मां शीतला की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा में बासी भोजन भी खाया जाता है। हिंदू धर्म में माता शीतला को स्वच्छता और अरोग्य की देवी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां शीतला की विधि-विधान से पूजा करने और श्री कालिकाष्टकम् का पाठ करने से व्यक्ति पर मां शीतला की कृपा मिलती है। इसके अलावा, जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों से छुटकारा मिलता है।
॥ श्री कालिकाष्टकम् ॥ (kalika Ashtakam)
गलद्रक्तमुण्डावलीकण्ठमालामहोघोररावा सुदंष्ट्रा कराला।
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशीमहाकालकामाकुला कालिकेयम्॥1॥
भुजे वामयुग्मे शिरोऽसिं दधानावरं दक्षयुग्मेऽभयं वै तथैव।
सुमध्याऽपि तुङ्गस्तनाभारनम्रालसद्रक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या॥2॥
वद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशीलसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची।
शवाकारमञ्चाधिरूढा शिवाभिश्-चतुर्दिक्षुशब्दायमानाऽभिरेजे॥3॥
विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन्समाराध्य कालीं प्रधाना बभूबुः।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिंस्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥4॥
जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयंसुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम्।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयंस्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥5॥
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्लीमनोजांस्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात्।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं-स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥6॥
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्तालसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते।
जपध्यानपूजासुधाधौतपङ्कास्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥7॥
चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दंशरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम्।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तंस्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥8॥
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्राकदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापिस्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥9॥
क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं मयालोकमध्ये प्रकाशिकृतं यत्।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात्स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥10॥
यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्यस्तदासर्वलोके विशालो भवेच्च।
गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्तिःस्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥11॥