Raja Rajeswara temple: श्री राजा राजेश्वर स्वामी मंदिर में कौनसे देवताओं की पूजा की जाती है? यहां जानें इसकी मान्यता और विशेषताएं।

Raja Rajeswara temple: आज हम दक्षिण का काशी नामक प्रसिद्ध मंदिर का वर्णन करेंगे। तो आइए जानते हैं श्री राजा राजेश्वर स्वामी मंदिर की मान्यताएं और कहां है।
Raja Rajeswara मंदिर: भारत सहित दुनिया भर में भगवान शिव के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। लोगों की अलग-अलग मान्यताओं और गहरी आस्था इन मंदिरों से जुड़ी हुई हैं। हम आज आपको एक शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका अपना इतिहास और महत्व है। हम श्री राजा राजेश्वली स्वामी मंदिर की बात कर रहे हैं, जो वेमुलावाड़ा, तेलंगाना में है। दक्षिण भारत में शिव के कई मंदिरों में इस मंदिर का महत्वपूर्ण स्थान है। तो चलिए श्री राजा राजेश्वर स्वामी को जानते हैं।
राजा राजेश्वरी मंदिर से संबंधित स्वीकृतियाँ
श्री राजा राजेश्वरी स्वामी मंदिर को दक्षिण का काशी और हरि हर क्षेत्र भी कहते हैं। राजा नरेंद्र, अर्जुन के पोते, ने 750 से 973 ईस्वी में श्री राजा राजेश्वरी स्वामी मंदिर का निर्माण किया था। पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि राजा नरेन्द्र ने एक ऋषि के बेटे को गलती से मार डाला था। इसलिए उन्हें कोढ़ लग गया। भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है कि राजा नरेन्द्र ने इसी ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए धर्मगुंडम में पुष्करणी तालाब में स्नान किया था। उन्हें सपने में भगवान राजराजेश्वर और देवी राजराजेश्वरी ने देखा।दोनों ने राजा नरेंद्र को मंदिर बनाने के लिए कहा। परीक्षित ने पुष्करणी तालाब के पास शिवलिंगम का निर्माण किया। इस मंदिर को परीक्षित के पोते राजा नरेंद्र ने 750 से 973 ईसवी के दौरान बनाया गया था। भगवान शिव को राजा राजेश्वर मंदिर में ‘नीला लोहिता शिव लिंगम’ के रूप में पूजा जाता है। इस श्लोक में लिंग पुराण में भगवान का नील लोहिता स्वरूप बताया गया है।
श्री राजा राजेश्वरी स्वामी मंदिर की उत्पत्ति
राज राजेश्वर मंदिर करीमनगर से 38 किलोमीटर दूर है। 750 से 973 ईसवी तक, यह मंदिर वेमुलावड़ा चालुक्यों की राजधानी था। लेमुलावाटिका नामक गांव में यह मंदिर बना है। मंदिर का पीठासीन देवता राज राजेश्वर स्वामी है, जिसे स्थानीय लोग राजन्ना कहते हैं। राजराजेश्वर की प्रतिमा के दाहिनी ओर राजराजेश्वरी देवी की मूर्ति है, और बाईं ओर सिद्धि विनायक और लक्ष्मी की मूर्ति विराजमान है।