Vat Savitri Vrat 2025: इस बार वट सावित्री का व्रत एक अद्भुत संयोग से रखा जाएगा; नोट करें सही तिथि और शुभ मुहूर्त!
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Vat Savitri Vrat 2025 Kab Hai: हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है।
Vat Savitri Vrat 2025 Kab Hai: ये व्रत रखने वाली महिलाएं अपने पति को लंबी उम्र और खुशहाल जीवन देती हैं। इसलिए आइए जानते हैं कि इस वर्ष वट सावित्री का व्रत कब होगा। इस दिन का शुभ मुहूर्त और तिथि क्या है? साथ ही जानिए कि वट सावित्री व्रत के दिन क्या दुर्लभ संयोग बन रहे हैं. हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत बहुत महत्वपूर्ण है। यह वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर किया जाता है। सुहागिन महिलाओं के लिए ये व्रत बहुत महत्वपूर्ण हैं। दरअसल, सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत रखकर अपने पति को लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना करती हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में इस दिन वट, या बरगद के पेड़ की पूजा का विधान है। इस दिन पूजा के दौरान सावित्री और सत्यवान की कहानी भी सुनी जाती है।
एक संयोग में वट सावित्री व्रत
2025 में वट सावित्री व्रत एक दुर्लभ संयोग में होगा। इस साल वट सावित्री व्रत की तिथि को लेकर लोगों में थोड़ा संशय है। इसलिए आइए जानते हैं कि इस वर्ष वट सावित्री व्रत कब होगा। चलिए व्रत की सही तिथि और शुभ मुूहूर्त जानते हैं। साथ ही जानते हैं कि वट सावित्री का व्रत पर कौनसा दुर्लभ संयोग संयोग बन रहा है।
वट सावित्री व्रत इस साल कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, 2025 में ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या 26 मई को दोपहर 12 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगी। 27 मई को सूर्योदय के कुछ ही समय बाद इस तिथि का समापन होगा। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, जिस दिन दोपहर में अमावस्या हो, उसी दिन व्रत रखना शुभ है। इसलिए इस वर्ष वट सावित्री का व्रत 26 मई को होगा।
बनेंगे ये दुर्लभ संयोग
यह दिन और भी शुभ माना जाता है क्योंकि इस बार वट सावित्री के व्रत पर कुछ दुर्लभ योग बन रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष वट सावित्री व्रत के दिन सोमवती अमावस्या होगी। हिंदू धर्म में सोमवती अमावस्या बहुत शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि वट सावित्री व्रत करने से पति की उम्र बढ़ती है। साथ ही घर में आनंद आता है। 26 मई को भी शनि देव की जयंती मनाई जाएगी। इसलिए इस दिन व्रत और पूजन करने से भी शनि देव का आशीर्वाद मिलेगा।
व्रत की परंपरा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावित्री ने अपने पति के प्राण यमराज से वापस लाने के लिए कठोर तप किया था। इसके बाद से इस व्रत की पंरपरा शुरू हो गई, जो आज तक चली आ रही है।