भारत

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़: संसद भ्रमण करने आये छात्रों के साथ उपराष्ट्रपति के संवाद के प्रमुख अंश

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

किसी भी राष्ट्र के प्रजातंत्र के लिए पत्रकारिता का बहुत योगदान है। It is known as the pillar of democracy, the fourth pillar of democracy and this pillar is all important. देश के विकास की ओर पत्रकारिता का जो ध्यान जा रहा है, उसमें गुणात्मक बढ़ोतरी की आवश्यकता है।

 चिंतन मंथन का विषय है कि जिस घटना से, जिसका दायरा कम है, जो घटना वर्तमान स्थिति को परिभाषित नहीं करती है, जिस घटना का दूरगामी असर नहीं है, वह घटना ज्यादा से ज्यादा space occupy करती है। Negativity gets big. जो गलत narrative है, वह न्यूक्लियर स्पीड से चले जाते हैं। जो सार्थक काम हो रहे हैं, गहराई के काम हो रहे हैं, दूरगामी काम हो रहे हैं, उनके प्रति आकर्षण कम होते जा रहा है। दुनिया में आज भारत को किसी भी दृष्टि से आंक लो, हमारा सर ऊंचा होता है।

अर्थव्यवस्था में 1990 में, जब मैं केंद्र में मंत्री था और लोकसभा का सदस्य था, हमारी अर्थव्यवस्था की ताकत, भारत की अर्थव्यवस्था की ताकत, उस देश की ताकत जहां दुनिया के एक छटे लोग रहते हैं, लंदन और पेरिस शहर से कम थी। और हम कहां आ गए हैं। पिछले 10 वर्ष में 11वीं पायदान से आकर पांचवें पायदान पर आ गए हैं। किन को पीछे छोड़ा? यूके को, फ्रांस को, कनाडा को, ब्राजील को।

आने वाले 2 वर्षों में जर्मनी और जापान भी हमसे पीछे होंगे। भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा परचेसिंग पावर है। हमारी जो गती है, उसका आप अंदाजा नहीं लगा सकते। किसी भी देश में यह संभव नहीं हो सकता कि 50 करोड़ लोगों को, जो बैंकिंग व्यवस्था से दूर थे, बैंक के अंदर पदार्पण नहीं कर सकते थे, हिचकिचाहट थी, उन लोगों के अकाउंट खुले।

 कितनी बड़ी क्रांति आई है कि देश के 10 करोड़ से ज्यादा किसान इसी माध्यम से केंद्र की सहायता पीएम किसान निधि की सीधी प्राप्त करते हैं। हमने वह जमाना देखा है, बिजली का बिल देने के लिए, पानी का बिल देने के लिए, एप्लीकेशन जमा करने के लिए लंबी लाइन लगती थी, छुट्टी लेनी पड़ती थी। वह सब गायब हो गई है। भारत एक बेमिसाल प्रगति की ओर है। जिस देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था, मैं उस समय मंत्री परिषद में था।

हमारा सोना हवाई जहाज से स्विट्जरलैंड भेजा गया, 2 बैंक में गिरवी रखा गया। तब हमारा foreign exchange एक बिलियन के आसपास था। आज यह 660 बिलियन से ज्यादा है। इतनी बड़ी प्रगति के बाद चौथा स्तंभ कई बार नकारात्मक बातों को, भ्रामक बातों को फैलाता है। यह चिंतन का विषय है।

देश की संसदीय व्यवस्था कितनी सुचारू ढंग से चले, वह पत्रकारिता पर निर्भर करती है। संविधान सभा करीब 3 साल तक चली। कभी कोई व्यवधान नहीं  हुआ, कभी कोई नारेबाजी नहीं हुई, कभी कोई वेल में नहीं आया, कभी कोई उत्पात नहीं हुआ। वह वास्तव में प्रजातंत्र का मंदिर था। वहां पर जनतंत्र की पूजा होती थी। प्रजातंत्र का सृजन हुआ था, प्रजातंत्र की नींव रखी गई थी। और आज के दिन हम क्या देख रहे हैं? अखाड़ा बन गया है। disruption, disturbance राजनीतिक हथियार बन गए हैं। यह कितनी दर्दनाक बात है।

पत्रकारिता इस मामले में चुप्पी साधे हुए है। disturbance को आप हैडलाइन करते हैं। जो डिस्टर्ब करते हैं, वह आपके हीरो हो जाते हैं। आकलन करते नहीं हैं। कोई भी अध्यक्ष राज्यसभा के सभापति को कुछ भी कह दे, ऐसे दुराचरण को आप प्रीमियम पर रखते हैं। यह पत्रकारिता के लिए बहुत सोच और चिंतन का विषय है।

दुनिया के किसी भी विकसित देश में चले जाइए, ऐसा नहीं होता। आप पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। यह इस जिम्मेदारी का निर्वहन कीजिए। भारत की असली तस्वीर को दुनिया के सामने रखिए। भारत का आकलन बाहर के लोग नहीं कर सकते, वह अपनी दृष्टि से करते हैं। बहुत लोग हैं, देश में कम है, बाहर ज्यादा है, जो हमारी अप्रत्याशित, अकल्पनीय जो हम महाशक्ति बने रहें हैं, जो प्रगति कर रहे हैं, उसको पचा नहीं पा रहे हैं।

भारत कैसा देश है? 5000 साल की सांस्कृतिक विरासत दुनिया के कौन से देश में है? हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था कितनी स्वस्थ है। हमारे यहां शासन परिवर्तन कितना आसानी से होता है। हर चुनाव दर्शाता है। हाल का चुनाव कितना जबरदस्त रूप से संपन्न हुआ। पर नतीजा आपके पक्ष में आए तो हर्षोल्लास में हो, नतीजा आपके विरुद्ध में आए तो आप खामियां निकालते हो। ऐसे दोहरे मापदंड पर, ऐसे दोगलेपन पर, ऐसे अमर्यादित आचरण पर पत्रकारिता का एक योगदान होना चाहिए।

आपकी पृष्ठभूमि आपके एडिटोरियल में है। एडिटोरियल को परिभाषित कीजिए। देश के विकास से, देश की संस्कृति से, देश कहां से कहां आ गया। थोड़ी सी असफलता और आप इतना बड़ा देते हैं, इस बात को नजरअंदाज करते हुए की असफलता किसी भी प्रयास में सफलता का परिचायक है।

चंद्रयान-2 सितंबर 2019 की बात है। मध्य रात्रि के बाद चांद पर उसको लैंड करना था। हमें बहुत बड़ी सफलता मिली कि हम चांद पर पहुंच गए। इतनी बड़ी सफलता की चांद की कुछ मीटर तक पहुंच गए। आखिर में सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हुई। कुछ लोगों ने कहा असफल हो गया, अरे चंद्रयान 3 की सफलता, चंद्रयान 3 ने जो तिरंगा, जो  ‘शिव शक्ति पॉइंट’ दिया है उसकी नींव तो चंद्रयान-2 था।

आपको यह narrative बदलना होगा, इस narrative पर थोड़ा ध्यान दीजिए। Commercialisation and control of the media, the narratives that are suited to them alone get floated is far more dangerous than COVID।

हर संस्था अपने दायरे में रहे इसमें पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान है। मैं तो यही कहूंगा it is time for soul searching, आत्मा में झांकने का समय आ गया है पत्रकारिता के लिए। कितना अच्छा लगता है इनमें हर एक बालक ने जो काम किया है Little Editor, उनका नाम देखा आपने, उनकी प्रीति देखी है, कितने उत्साहित थे।

We have to live up to the highest standards of journalism. Both our parliamentary democracy and the decorum must define it.

We must exemplify our conduct so that others can emulate us. The same applies to journalism. I appeal to the media in all humility, in all earnestness, it is time for them to be partners of growth. That they can do by uploading good works, being critical of the wrong situations, and deficiencies. But they should not become victims of looking things from partisan prism. They must not identify themselves with political parties or their agenda or those forces that are inimical to the interest of the nation.

I have seen quite often, narratives are afloat to taint, tarnish, demean our institutions. Even in Parliament, We cannot afford to do it, an election of this kind, that has got global response.

Some people are raising doubts. That is painful and to be deprecated. We are the world’s most vibrant democracy, the oldest democracy, the fastest growing democracy and our economy is on the rise as never before.

हम सब और चारों स्तंभ मिलकर विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और पत्रकारिता हम सब उस चीज़ का हिस्सा हैं जिसको मैं कहता हूं मैराथन मार्च फॉर भारत@2047। वो मार्च है विकसित भारत के लिए, यह बहुत बड़ा हवन है, इस हवन में हर एक को आहुति देनी है, पूर्ण आहुति तभी होगी जब देश का हर नागरिक हर स्थिति में बिना रोक-टोक, बिना किसी किंचित अवरोध के एक ही चीज़ में विश्वास रखे राष्ट्र सर्वोपरि है।

source: https://pib.gov.in

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