women’s day 2025: दादा साहब फाल्के पुरस्कार हासिल करने वाली पहली अभिनेत्री कौन थीं? दो बार शादी करने के बाद भी वे अकेली रह गईं

women’s day 2025: देविका रानी भारत की पहली अभिनेत्री थी जिसे दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला था। उन्होंने भारतीय सिनेमा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की शुरुआत की और एक अग्रणी के रूप में एक लंबी विरासत छोड़ गईं।
women’s day 2025: भारतीय सिनेमा में पहले महिलाओं को भी पुरुष ही दिखाया जाता था। फिर धीरे-धीरे कई महिलाओं ने प्रवेश किया। देविका रानी भारतीय सिनेमा में प्रवेश करने वाली पहली कुछ महिलाओं में से एक थीं। 1969 में इन्हें प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया गया था। भारतीय फिल्म उद्योग में उनका योगदान बहुत बड़ा था, और उनकी विरासत फिल्म निर्माताओं और अभिनेताओं की पीढ़ियों को प्रेरित करती है। चलिए जानते हैं देविका रानी के फिल्मी सफर और निजी जीवन के बारे में।
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
देविका रानी का जन्म 30 मार्च 1908 को विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश में एक अमीर बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता सुरेन्द्रनाथ चौधरी एक बैरिस्टर थे, और उनकी मां सरला देवी एक प्रसिद्ध लेखिका थीं। देविका रानी एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध घर में पली-बढ़ी थी, इसलिए कम उम्र से ही उन्होंने साहित्य, कला और संगीत से परिचय प्राप्त किया, जिसने उनके कला प्रेम को जगाया। आयरलैंड में शैनन कॉलेज ऑफ होटल मैनेजमेंट में पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अभिनय का प्रशिक्षण लंदन में रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट (RADA) में लिया। कला में उनकी प्रारंभिक शिक्षा ने एक अभिनेत्री के रूप में उनके करियर को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारतीय सिनेमा में विशिष्ट योगदान
1930 के दशक में, भारतीय सिनेमा में देविका रानी की यात्रा शुरू हुई, जब उद्योग अभी भी अपने प्रारंभिक दौर में था। 1933 में उनके पति हिमांशु राय ने निर्देशित भारतीय सिनेमा की पहली साउंड फिल्म ‘कर्मा’ से उनका फिल्मी करियर शुरू हुआ। उनका भविष्य एक प्रतिभाशाली और सुंदर अभिनेत्री के रूप में कर्मा में उनकी भूमिका से तय हुआ था। 1934 में उनके पति ने स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज को बनाया, जो उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उनकी कई फिल्मों में अभिनय के अलावा, उन्होंने पर्दे के पीछे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे उद्योग का विकास हुआ।
दिखाई असाधारण प्रतिभा
उन्हें इश्क-ए-दिल (1936) और अछूत कन्या (1936) जैसी प्रारंभिक फिल्मों में उत्कृष्ट अभिनय ने अपने समय की सबसे लोकप्रिय अभिनेत्रियों में से एक बनाया। 1930 और 1940 के दशक तक, देविका रानी भारत की सबसे अमीर अभिनेत्रियों में से एक थीं। उनकी सुंदर अभिनय, कठिन भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता और स्क्रीन पर नियंत्रण ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक विशिष्ट नाम बनाया। महिलाओं के लिए एक बहुत ही पुरुष-प्रधान उद्योग में उनके प्रदर्शन ने बाधाओं को दूर करने में मदद की। वह बॉलीवुड में महिलाओं की अगली पीढ़ियों के लिए मंच तैयार करने वाली पहली अभिनेत्रियों में से एक थीं, जो अपनी अद्भुत प्रतिभा के लिए सम्मानित हुईं।
प्रेम कहानी कैसी रही
देविका रानी का निजी जीवन उनके कामकाज से बहुत संबंधित था। 1929 में उन्होंने एक प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता और बॉम्बे टॉकीज के सह-संस्थापक हिमांशु राय से शादी की। राय ने देविका रानी को फिल्म उद्योग में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसलिए उनका संबंध सिर्फ निजी नहीं बल्कि पेशेवर भी था। लेकिन 1940 में हिमांशु राय की मृत्यु के बाद दुर्घटना हुई। उनकी असामयिक मृत्यु ने देविका रानी को निजी और पेशेवर दोनों तरह से तबाह कर दिया। उन्होंने कुछ समय तक अभिनय करना जारी रखा, लेकिन इसके तुरंत बाद उन्होंने बॉम्बे टॉकीज से इस्तीफा दे दिया और लाइमलाइट से दूर हो गईं।
1940 के दशक में देविका रानी ने रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रोरिक से दोबारा शादी की और फिल्म उद्योग से चली गईं। दंपति ने सार्वजनिक नजरों से दूर बैंगलोर जैसे स्थानों पर एक शांत जीवन व्यतीत किया, जहां उन्होंने अपने निजी जीवन और रुचियों पर ध्यान केंद्रित किया। सिनेमा से दूर होने के बावजूद देविका रानी का उद्योग पर प्रभाव महत्वपूर्ण रहा।