आदर्श ग्राम का सपना आज भी पूरा नहीं हुआ

वीरेंद्र कुमार पैन्यूली

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने शुक्रवार, 24 सितंबर, 2021 को व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वागत करते हुए कहा कि एक सप्ताह बाद दुनिया महात्मा गांधी का जन्मदिन मनायेगी। उन्होंने सहिष्णुता और अहिंसा का संदेश दिया, जो आज पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इस कथन से स्पष्ट होता है कि शांति की स्थापना के लिए गांधी मार्ग की अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकता है। लेकिन भारत में, 2 अक्तूबर, 2019 से 2 अक्तूबर, 2020 के बीच बापू की 150वीं वर्षगांठ के सरकारी समारोह सिर्फ औपचारिकता थीं। उससे आम आदमी अछूता ही रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को पृथ्वी को ट्रस्ट मानते हुए बापू के ट्रस्टीशिप सिद्धांत का उल्लेख किया कि जंगलों, नदियों, पहाड़ों व खनिज दोहन में सरकारें व माफिया कितनी चोट पहुंचाते हैं। आमजन को न्यायालयों का रुख करना पड़ता है। जीवन को दांव पर लगाना पड़ता है। दरअसल, गांधी का अनुपालन होने लगे तो राजनेताओं को वोट बैंक क्षरित होने के भी जोखिम हैं। राजनेता व सरकारें अपना हित प्रासंगिक गांधी को अप्रासंगिक ही रहने देने में या बनाने में देख रही हैं।

गांधी को अपनाना और महात्मा गांधी को समझना दोनों आज भी महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अक्तूबर 2019 से ही पंचायती राज प्रणाली में त्रिस्तरीय चुनाव होते रहे हैं 150वीं वर्षगांठ राष्ट्रीय आयोजनों के दौरान। कुछ अन्य राज्यों में पंचायती उपचुनाव भी हुए। 2021 में भी उत्तर प्रदेश में ये जारी रहेंगे। ईमानदारी से, इन राज्यों में बापू की ग्राम सुराज, ग्राम स्वराज और ग्राम गणतंत्र की कल्पना को साकार करने की संभावनाएं खोजी जा सकती थीं।

गांधी पंचायतों को आदर्श गणतंत्र बनाने का माध्यम और उपाय दोनों मानते थे। सत्य, अहिंसा, समरसता और व्यक्ति की आजादी जैसे छुआछूत मुक्त समाज के मूल्यों का पालन भी पंचायतों में करना चाहते थे। ऐसा वातावरण बनाने के लिए, उम्मीदवारों को गांधीवादी मूल्यों का पालन करना चाहिए था, अर्थात् बिना किसी राजनीतिक दल के उम्मीदवार बनकर चुनाव लड़ना चाहिए था। दलीय आधार पर पंचायतों में हस्तक्षेप नहीं करने की नैतिकता भी राजनीतिक दलों में पहले तिरोहित हुई।

बापू ने गांवों में राजनीतिक अधिकार चाहे। वे आत्मनिर्भर और आत्मनिर्भर गांव में आर्थिक प्रजातंत्र चाहते थे। आज, ग्राम पंचायतों में नियोजन की स्वतंत्रता को छोड़कर, जिला पंचायतों में भी जिला प्रभारी मंत्री जिला पंचायत योजना प्रस्तावों को बदल देते हैं। यह भी कारण है कि गांवों और ग्राम पंचायतों की आर्थिक संभावनाएं और आय कम हो गई हैं। गांधीजी ने ग्राम स्वराज में व्यक्ति और ग्रामसभा दोनों को महत्वपूर्ण समझा। उनकी उम्मीद थी कि गांव सभाओं में गांव की जनता सक्रियता से भाग लेगी, जहां वे गांव की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को पहचानेंगे। गांव सभाओं और पंचायत समितियों में ग्रामीण जनसहभागिता का स्तर इसके विपरीत ग्रामीण जनसहभागिता का स्तर यह है कि गांव सभाओं व पंचायत समितियों में वैधानिक संख्या कम से कम रखने पर भी कोरम पूरा नहीं होता है। फलत: अपर्याप्त कोरम में ही प्रस्तावों पर कार्यवाहियों का अधिकार मिलता है। राज्य सरकारें पंचों व पंचायतों को उन सभी अधिकारों, विभाग, वित्तीय कार्य व कर्मचारी देने से भी कतराती हैं जिनकी वे संवैधानिक हकदार हैं। जबकि गांधी ग्राम पंचायतों में विधायिका, न्यायपालिका व प्रशासकीय इकाई का समवेत रूप देखना चाहते थे।

ग्राम पंचायतों और गांव सभाओं को न चाहते हुए भी पूरे देश में नगरों और महानगरों में एकीकृत करना गांवों की स्वतंत्रता है। गांव पंचायतों को अपने संसाधनों के साथ विकास का खाका और अधिकार होना चाहिए, अगर वे स्वतंत्र होना चाहते हैं। सचमुच, पिता भी उस समय किसी गलतफहमी में नहीं थे। साथ ही, वे समझते थे कि आदर्श ग्राम पंचायतों को बनाना या उनके लिए अभियान चलाना बहुत मुश्किल होगा। यहाँ तक कि एक गांव को ही आदर्श ग्राम पंचायत बनाने में पूरा जीवन खप सकता है। गांधी ने इस कार्य को दुष्कर भी समझा होगा क्योंकि उस समय निर्बल लोगों को आज से ज्यादा डर था। व्यक्ति के लिए गांवों के दबंगों के बीच या अपने साहूकारों के बीच अपना विचार रखना आसान न था। खुली ग्राम सभाओं में तो ऐसा करना और ही मुश्किल होता। चुने गये दलित व महिला पंचों, सरपंचों को उनके पूरे हक से काम करने का वातावरण बनाना ग्राम सुराज के लिए आवश्यक है।

पिताजी ने भी कहा कि जब आप दुविधा में हैं कि कोई काम करना चाहिए या नहीं, तो विचार करें कि आपके उस काम से समाज के अंतिम व्यक्ति पर क्या असर होगा। सरकारें महान स्वतंत्रता सेनानी बापू को सम्मान देने के लिए अपने नेताओं को देखें और देखें कि उनके फैसलों से गांवों पर क्या असर होता है। यदि संभव हो तो उन्हें गांधी के ग्राम सुराज और ग्राम स्वराज की कसौटी पर भी विचार करें। वर्तमान और भविष्य में ग्राम गणतंत्र और पंचायती चुनावों को लागू करने के लिए जनता और राजनीतिक पार्टियां जिस तरह से काम करेंगे, वह निर्धारित करेगा कि हम गांधी जी को मानते हैं या नहीं। गांधी गाँवों का भारत में कोई संबंध है कि नहीं?

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